________________ 8 . पष्ठ अध्याय 183 द्वारा लोभ कषाय क्षीण या शुद्ध होते होते अत्यन्त सूक्ष्मरूपमें रह जाता है इसलिए इस गुणस्थानको सूक्ष्मसाम्पराय कहते हैं। साम्पराय नाम लोभका है // 15-16 // . _ विशेषार्थ-सातवें गुणस्थानके जिस सातिशय अप्रमत्त भाग . से यह जीब ऊपरके गुणस्थानोमें चढ़ता है वहींसे उनकी दो धाराएँ हो जाती हैं—एक उपशम श्रेणीकी और दूसरी क्षपक श्रेणी * की / श्रेणी पंक्ति या नसेनीको कहते हैं। मोहकमके क्षय करनेकी जिस जीवके योग्यता नहीं होती है, जो क्षायिक सम्यग्दृष्टि नहीं ... होता है, वह उपशम श्रेणी चढ़ता है। और जिसमें योग्यता होती है, जो क्षायिक सम्यग्दृष्टि होता है, वह क्षपक श्रेणी चढ़ता है। आठवाँ, नवाँ, दशवाँ और ग्यारहवाँ ये चार गुणस्थान उपशम श्रेणीके हैं तथा आठवाँ, नवाँ, दशवाँ और बारहवाँ, ये चार गुणस्थान क्षपक श्रेणीके हैं। सो इन आठवें, नवें और दशवें गुणस्थानोंमें मोहकर्मके उपशान्त करने और क्षपण करनेके लिए परिणामोंकी दो धाराएँ साथ साथ बहती रहती हैं। जो आठवें गुणस्थानसे उपश्रेणी पर चढ़ता है, वह अपनी उपशम धारामें ही प्रवाहित रहता है, और इस दशवें गुणस्थानमें आकर मोहकर्मको उपशान्त कर उपशान्तमोह नामक ग्यारहवें गुणस्थानमें पहुँच जाता है। किन्तु जो आठवें क्षपक श्रेणीपर चढ़ता है, वह आठवें, नर्वे और दशवें गुणस्थानमें मोहकर्मका क्षय करके ग्यारहवें गुणस्थानमें न जाकर एक दम बारहवें गुणस्थानमें चढ़ जाता है और क्षीणमोही वीतरागछमस्थ संज्ञाको प्राप्त करता है। इसलिए आठवें, नवे, दशवे गुणस्थानका वर्णन करते हुए ऊपर तीनों गुणस्थानोंके मोर