________________ 12 जैनधर्मामृत ही उसके परिणाम हैं इसलिए प्रत्येक समयमें एक ही परिणाम होता है। अतएव यहाँपर भिन्न समयवर्ती जीवोंके परिणामोंमें सर्वथा विषमता और एकसमयवर्ती जीवोंके परिणामों में सर्वथा सदृशता या समानता ही होती है। इस गुणस्थानमें होने वाले परिणामोंके द्वारा आयुकर्मको छोड़कर शेष सात कोंकी गुणश्रेणि निर्जरा, गुणसंक्रमण, स्थितिखंडन और अनुभागखंडन होता है और मोहनीय कर्मकी बादरकृष्टि सूक्ष्मकृष्टि आदि अनेक कार्य होते हैं, जिनका विस्तृत और स्पष्ट वर्णन कसायपाहुड सुत्त या .... लब्धिसार क्षपणासारसे जानना चाहिए / संक्षेपमें यहाँ इतना ही जान लेना चाहिए कि इस गुणस्थानमें मोहरूपी महाशिलाके छोटे .. छोटे टुकड़े कर दिये जाते हैं। 10 सूक्ष्मसाम्परायसंयत गुणस्थान लोभसंज्वलनः सूक्ष्मः शमं यत्र प्रपद्यते / क्षयं वा संयतः सूक्ष्मः साम्परायः स कथ्यते // 15|| कौसुम्भोऽन्तर्गतो रागो यथा वस्त्रेऽवतिष्ठते / सूचमलोभगुणे लोभः शोध्यमानस्तथा तनुः // 16 // इस गुणस्थानमें परिणामोंकी प्रकृष्ट विशुद्धिके द्वारो मोहकर्म का अवशिष्ट भेद लोभ कषाय अत्यन्त क्षीण कर दिया जाता है, जिसे कि सूक्ष्मसाम्पराय कहते हैं। उस सूक्ष्म लोभका इस गुणस्थानमें या तो उपशमन किया जाता है अथवा क्षपण किया जाता है। जिस प्रकार धुले हुए कसूमी रंगके वस्त्रमें लालिमाकी सूक्ष्म आभा रह जाती है उसी प्रकार इस गुणस्थानके परिणामों .