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________________ - पष्ठ अध्याय 181 एक साथ प्रवेश करें, तो उनमें एक समयवर्ती जीवोंमेंसे कितने ही . जीवोंके परिणाम तो परस्पर समान रहेंगे, और कितने ही जीवोंके. . विभिन्न रहेंगे। परन्तु आगे आगेके समयोंमें सभीके परिणाम अपूर्व और विशुद्ध होंगे, इसीलिए इस. गुणस्थानका नाम अपूर्वकरण है। इस गुणस्थानका कार्य मोहकमेके उपशमन या क्षपणकी भूमिका तैयार कर देना है। यद्यपि इस गुणस्थानमें किसी भी कर्मका उपशमन और क्षपण नहीं होता है तथापि मोहकर्मके स्थितिखंडन, अनुभागखंडन आदि करनेकी भूमिका तैयार कर दी जाती है। अनिवृत्तिकरण संयत गुणस्थान . ये संस्थानादिना भिन्नाः समानाः परिणामतः। --- समानसमयावस्थास्ते भवन्त्यनिवृत्तयः / / 13 // क्षपयन्ति महामोह विद्विपं शमयन्ति ते / . विनिमलतरैर्भावैः स्थूलकोपादिवृत्तयः // 14 // अन्तमुहूर्त्तमात्र अनिवृत्तिकरणके कालमेंसे आदि, मध्य या * अन्तके किसी एक समान समयमें अवस्थित अनेक जीव यद्यपि संस्थान-शरीर-आकार आदिसे भिन्न-भिन्न प्रकारके होते हैं, तथापि वे सब परिणामोंकी अपेक्षा समान होते हैं, उनमें परस्पर निवृत्ति अर्थात् भेद या विषमता नहीं होती है, इसलिए वे अनिवृत्तिकरण कहलाते हैं। इस अनिवृत्तिकरण गुणस्थानवाले जीवों से कुछ जीव तो अत्यन्त निर्मल भावोंके द्वारा महामोहरूपी शत्रुका क्षय करते हैं, और कितने ही उसका उपशमन करते हैं // 13-14 // .: भावार्थ-अनिवृत्तिकरण गुणस्थानका जितना काल है, उतने
SR No.010233
Book TitleJain Dharmamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1965
Total Pages177
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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