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जैन धर्म मे तप
आप कहेगे - 'आठ' पर यह तो कोई भी दूसरी-तीसरी कक्षा का विद्यार्थी बता देगा, फिर मैं आपसे क्यो
?
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पूछता
?
वादशाह ने पूछा -- बारह में से चार निकल गये तो कितने बचे आप जैसे ही सभासद बैठे थे, वोले - "हजूर । आठ बचे !”
वादशाह ने वजीर की तरफ देखा, वजीर वीरवल चुपचाप सव सुन रहा था । वादशाह बोले- वीरवल । तुम क्यो नही बोलते ?
वीरबल ने कहा - "हजूर । क्या वोलू ? वारह में से चार निकल गये तो कुछ नही बचा ?”
लोगो को आश्चर्य हुआ, क्या वीरबल जोड बाकी भी भूल गया ? वादशाह पूछा- कैसे ?
ने
वीरवल ने बताया
-
-वर्ष के बारह महीने होते हैं, उनमे चार महीने वर्पा
ऋतु के हैं, वर्षा होती है,
खेतो मे अन्न उपजता है, नदी नाले-सरोवर पानी से भर जाते हैं, समूची सृष्टि मे रग-रगीली छा जाती है, चारो तरफ आनन्द और सुख-समृद्धि लहराने लगती है । यदि वर्षा ऋतु मे चार महीने सूखे निकल गये तो ? सावन की वर्षा मिगसर पोष मे हो तो ? क्या हाल होगा ससार का ? अकाल पडेगा, लोग भूखो मरेंगे, प्यासे मरेंगे, लाखो करोडो मनुष्य दाने-दाने को तरसते फिरेंगे । यदि ये चार महीने निकल जाये तो ससार मे हाहाकार मच जाये . "
तो भाइओ | ये चार - ज्ञान, दर्शन चारित्र और तप भी यदि जीवन मे न रहे तो फिर जीवन का भी वही हाल होगा जो चार मास निकलने से सृष्टि का होता है ।
शास्त्रो मे वैसे कई दृष्टियों से मोक्ष के अलग-अलग मार्ग भी बताये गये है । नय, निक्षेप आदि की दृष्टि से तथा साघना के विविध मार्गों की दृष्टि से भी इस पर विचार किया गया है । एक स्थान पर धर्म के चार द्वार वाताये हैं
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स्थानाग ४|४
चत्तारि
धम्मदारा,
खतो, मुत्ती, अज्जवे महवे '