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लक्ष्य साधना
हरड-बेहडे-आवला त्रिफला हरै त्रिदोष । ज्ञान-दर्श चारित्र त्रय देत मनुज को मोक्ष । मेदा-सक्कर-घीय से सीरो वर्ण सटाक । ज्ञान-दर्श-चारित्र ते मिटे कर्म की छाक । तेल-बती-दीपक मिलत अंधकार को नास। ज्ञान-दर्श-चारित्र ते मिले मोक्ष को वास । दाम-ठाम-हिय तीन ते बढे विणज व्यापार । ज्ञान-दर्श-चारित्र तिहु करदे भव जल पार । जल-वायु-अरु अग्नि त्रय करे यंत्र विस्तार । ज्ञान-दर्श-चारित्र तें छूटे आत्मविकार । नीम-गिलोय-चिरायता ज्वरनाशक ये तीन । ज्ञान-दर्श चारित्र तिन राग-द्वेष क्षय लीन । मसि-कागज-अरु लेखिनी लिखे जु मन का भाव । ज्ञान-दर्श-चारित्र ते समजे आत्म-स्वभाव । वर्षा-धरती-बीज ते होवे शाख सवाय ।
ज्ञान-दर्श चारित्र ते क्रोडो अघ मिट जाय।' उक्त उदाहरणो मे बताया है, जैसे हरड बेहडे और आवला इन तीनो के योग से त्रिफला बनता है, जो त्रिदोष का नाश करने वाला है, वैसे ही ज्ञानदर्शन चारित्र-कर्म दोष का नाश करके मोक्ष देने वाला है।
सीरा-हलुवा बनाने के लिए घी सक्कर और मेदा की जरूरत होती है, अधकार मिटाने के लिए तेल, बाती और दीपक (दीवट) की आवश्यकता होती है, व्यापार बढाने के लिए पैसा स्थान और हिम्मत की जरूरत होती है, यत्र व मशीन को चलाने के लिए पानी, हवा और अग्नि की जरूरत होती है, पुराने ज्वर को मिटाने के लिए नीम, गिलोय और चिरायता इन तीनो का घासा दिया जाता है, कविता व लेख लिखने के लिए स्याही, कागज और कलम चाहिए, धरती पर अन्न पैदा होने के लिए अच्छी भूमि,
१ मरुधर केसरी ग्रन्थावली पृ० ५८६
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