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________________ ध्यान तप . २ एकत्ववितर्कसविचार-जब भेद प्रधान चिंतन में मन स्थिरता प्राप्त कर लेता है तो फिर अभेद प्रधान चिंतन में स्वतः ही स्थिरता आ जाती है। इस ध्यान में वस्तु के एक रूप को ही ध्येय बनाया जाता है। यदि किसी एक पर्यायल्प अर्थ पर चिंतन चलता है तो उती पर वह चिंतन चलता रहेगा। साधक जिस योग (मन वचन व काया) में स्थिर है उसी योग पर अटल रहेगा। विपय व योग का परिवर्तन इस ध्यान में नहीं होता। जैसे निति- हवा रहित स्थान में दीपक स्थिरता के साथ जलता है, वैसे ही . विचार-पवन से मन अकंप रहता हुआ ध्यान की लौ लगाए रहता है । यद्यपि निर्वात गृह में भी दीपक को सूक्ष्म हवा मिलती रहती है, वैसे ही इस ध्यान में भी साधक सूक्ष्म विचारों पर चलता है, यह ध्यान सर्वधा निर्विचार ध्यान . नहीं है किन्तु विचार स्थिर हो जाते हैं-किसी एक ही वस्तु तत्व पर । ___३ सूक्ष्मझिया 5 प्रतिपाति-यह ध्यान अत्यन्त सुक्ष्म निया पर चलता है । इस ध्यान की स्थिति प्राप्त होने के बाद योगी पुनः अपने ध्यान से गिर .. नहीं सकता अतः इसे सुक्ष्म किया अप्रतिपाती कहा है । जैन आगमों में बताया गया है कि यह ध्यान केवलो-वीतराग आत्मा को ही होता है। जब आयुष्य का बहुत कम समय (अन्तर्मुहूर्त) शेष रह जाता है उस समय वीतराग बात्मा में योगनिरोप की प्रक्रिया चालू हो जाती है। स्थल काययोग के सहारे से स्थूल मन पोग को नुक्ष्म बनाया जाता है, फिर सुक्ष्म मन के सहारे स्यूलकाय योग को नुक्ष्म रूप देते हैं। फिर सूक्ष्म काययोग के अवलंबन से सूक्षम मन-वचन का निरोध करते हैं उस अवस्था में सिर्फ सुक्ष्म कार योगमात्र वासोच्छ्वास की प्रक्रिया ही शेप रह जाती है उस स्थिति का ध्यान ही यह ध्यान है । बस इनको अन्तर्मुहुंत हो जात्मा अपोगी सिद्ध मन जाता है। ४ समुच्छिन्नफियाऽनियत्ति-शुक्लध्यान की सीमारी दशा-अयोगी मा को प्रपन भूमिका है, उत्त ध्यान में सालोच्छवाम को मिला लेप ली है, मनु कान में प्रविष्ट होते वह दना भी समाप्त हो जाती है। आत्मा . सपंपा गोगों का निरोध कर देती है। भात्म प्रदेश तथा निन्न जनजारे . . . है। समस्त योग बनता समाप्त हो जाती है। माना गोर गुग स्थान
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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