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जैन धर्म मे तप
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अन्तर में झाको तो वहा की दिव्यसृष्टि तुम्हें दिखाई देगी और तव तुम अपने स्वरूप का नही अनुभव कर सकोगे ।
इस प्रकार एक बात निश्चित हुई कि हमारा लक्ष्य है—अन्तरदर्शन ! आत्मदर्शन या स्वरूपप्राप्ति | जिसे सीधी भाषा मे मोक्ष प्राप्ति भी कह सकते है ।
मोक्ष की परिभाषा एवं स्वरूप
वास्तव मे मोक्ष कोई भिन्न वस्तु नही है, आत्मा का आत्मस्वरूप मे प्रकट होना ही गोक्ष है । मोक्ष की परिभाया करते हुए आचार्य उमास्वाति कहते हैं
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कृत्स्नकर्म क्षयोमोक्ष
आत्मा के सम्पूर्ण कर्मों का क्षय हो जाना ही मोक्ष है । इसी बात को एक अन्य आचार्य ने कुछ स्पष्टता के माथ बता दिया है
कृत्स्नकर्मक्षयादात्मन स्वरूपावस्थानं मोक्ष २
नमस्त कर्मा का क्षय करके आत्मा अपने स्वरूप मे जब स्थिर हो जाता है, तब वही मोक्ष नाम मे कहा जाता है । मूलत मोक्ष का यही स्वरूप है । जैन दर्शन ही नहीं, भारत के अन्य दर्शनो ने भी मोक्ष के सम्वन्ध मे यही नितन प्रस्तुत किया है । नाख्य दर्शन के आचार्य ने कहा हैप्रकृति वियोगो मोक्ष
-आत्मा रूप पुम्यतत्व से प्रकृति रूप भौतिक तत्त्व का अलग हो जाना मोक्ष है ।
वैदान्त्रिक पानार्य के मतानुसार आत्मा का आत्मा में विलीन हो जाना हो मोक्ष है
आत्मन्येव तयो मुक्ति वेदान्तिक मते मताः *
१ उमापति नमयवि० ० १ ३ तक ) तत्वायंन्त्र १०१३
२ जैननिदान दपि ५३६
३ दर्शन मुन्नय ४३
४ पिकविलास