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________________ स्वाध्याय तप ४५६ देव का साक्षात्कार होने लगता है। यहां स्वाध्याय को जप के रूप में लिया गया है, क्योंकि जप, माला, आदि भी स्वाध्याय के अन्तर्गत आते हैं जिसका वर्णन भी आगे किया जा रहा है । स्वाध्याय के लाभ शास्त्रों में स्वाध्याय का यह जो महत्व बताया गया है, व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक दोनों दृष्टियों से उसका जो गुण-गौरव गाया गया है उसका विचार करने से हमारे सामने चार बातें आती हैं १. स्वाध्याय से जीवन में सद्विचार आते हैं, मन में सद् संस्कार जागृत होते हैं । २. स्वाध्याय से प्राचीन ज्ञान-विज्ञान की उपलब्धि होती है । हजारों वर्षों के अनुभवों की थाती स्वाध्याय के द्वारा हमें प्राप्त होती है। और जिन महापुरुपो ने दीर्घकालीन साधनाएं करके जो ज्ञान प्राप्त किया उस ज्ञान का लाभ बहुत ही सहज में मिल जाता है। ३. स्वाध्याय से मनोरंजन तो होता ही है, आनन्द भी आता है और योग्यता भी प्राप्त होती है । ४. स्वाध्याय करते रहने से मन एकाग्र एवं स्थिर होता है। जीवन में नियमितता आती है और निर्विकारता भी । जैसे अग्नि से सोने-चांदी का मल दूर होता है वैसे ही स्वाध्याय से मन का मैल दूर हो जाता है। सतत स्वाध्याय करते रहने से ज्ञान का विस्तार होता है। यदि नियम पूर्वक हम १५ मिनट भी प्रति दिन पढ़ते रहें तो कितनी पुस्तकें पढ़ सकते हैं इसका अनुमान है कुछ आपको? कल्पना करिए यदि एक मिनट में ३०० शब्द भी पढ़े जाय और पन्द्रह मिनट रोज पढ़े तो एक मास में १ लाख ३५ हजार शब्दों की एक पुस्तक पढ़ी जा सकती है। अर्थात् २२० से २२५ पेज तक को एक पुस्तक प्रतिमास पढ़ी जा सकती है सिर्फ १५ मिनट नियमित पड़ने से । इस प्रकार देखिए कि सतत स्वाध्याय करने वाला कितना विस्तृत अध्ययन कर सकता है। स्वाध्याय के पांच भेद प्राचीन समय में वेद एवं आगम जितने भी शान थे वे प्रायः कंठस्य रसे
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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