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... जैन धर्म में सर . सेवा के विषय में जन ग्रन्थों में महामुनि नंदीगेषा का परिण अना आपलं माना गया है जिन्होंने जीवन भर सेवावत : को अन्जानमार में निनाया। गोगी, तपस्वी- वृद्ध आदि की सेवा करने में न कभी उन मन में ग्लानि आई, और न समय असमय देखा। सेवा में ऐसी ही लीनता और सन्मयता होनी चाहिए। तनी बावृत्त का बो महान् फल बताया गया।
को प्राप्ति हो सकती है और सेवा गरम धर्म, सर्वोत्तम तप और मोन तो परम गाधना सिद्ध हो सकती है।