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जैन धर्म में ... है तो दूसरे बन्धु को उसका दुःख दूर करना ही चाहिए, उसकी सहा
करना बन्यु का कर्तव्य है । मानवता है। ५ मेवा करने में भावना शुद्ध होती है, मन में पवित्र विचार आते हैं और गरीर को कष्ट व संयम की साधना भी करनी होती है, इस कारण
वा स्वयं में ताश्चर्या भी है, इससे रुम तिरा होता है, कामे निजरा होने से आत्मा की विशुद्धि होती है, विमुख भागा कति करता है, वह मोक्ष पद भी प्राप्त कर सकता है। इसलिए मुक्ति को.... प्राप्ति के लिए भी नया करनी चाहिए।
के कुछ मुख्य तत्व है, विचार मुम हैं जिन पर जैन धर्म की सेवा माता टिकी हुई है। इस सेवा से दोनों लाभ हैदह लोक में भी गम, नीir प्रतिष्ठा, सम्मान एवं प्रसिद्धि मिलती है। सेवा करने वाला जनता का प्रिय रानता नीयन ताता है और परलोक में अपार डि, बस, बार एका
का तोचकर मुक्ति मिल जाती है- र... एका किया पफरी प्रसिद्धा ही किया दो काम सिद्ध करने वाली होती है।
दा, एक यात IIT में रखनी चाहिए-सेवा, सेवा की भाना होगा बारिए, पाहा की नामे नही। लोग कहते है-रो सेवा, पायो .. मेधा ! मह उक्ति आय कम काफी बदनाम हो गई है। मेवा कर पल पष्ट उलाने पर लोग तो नहीं कर च ।। । बोल मोर देते हैं। शी और भारत आस्तियों में पीना . और मोट
मिला नया करने आये है, . कोटमा म नु ने बड़ी की, पर बात हो nिt