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यावृत्य तप इस सेवा, एवं विधामगा के फलस्वरूप वाहमुनि ने चमावर्ती के विराट सुसों के योग्य कर्म उगाजित किये एवं सुबाहु मुनि ने विधानमा के द्वारा अपार दिव्य चाहुबल प्राप्त करने योग्य फर्म उपार्जन किये ! तो तीफार पद, नवी पद एवं लोकोत्तर बल, वैभव आदि की प्राप्ति का मुख्य कारण सेवा, बंगावृत्य आदि है-यह इन प्राचीन घटनाओं से भी जाना जा सका है।
सेवा बड़ी या रक्ति ? जैन धर्म में नया को कितना महत्व दिया है यह उक्त घटनाओं से तथा उस्लमों से स्पष्ट हो जाता है। जो सेवा करता है, उसमें चाहे अन्य कोई विशेषता हो या न हो किन्तु एक इसी विशेष गुण के कारण वह अपनी
आत्मा को महान बना सकता है, और तो या भगवान बना सकता है। भक्त सेवा करके भगवान बन सकता है मह कितनी बड़ी बात है कि जितनी आत्मशुद्धि पचास, भान आदि से होती है उतनी मुद्धि यह सपा द्वारा भी कर देता है। भारत में कहा है-रोगी, नवदीक्षित आचार्य आदि को मेवा करना हमा साधक महानिरा और महापर्यवसान (परम शि)ोराया कार ता। इसका अर्थ है या मुक्तिदायिनी ।
साधनाम जब सेवा का प्रसंग प्रामसार उप-उधर मही देना चाहिये। यदि कोई ध्यान कर रहा है, कोई माध्यान कर रहा २ मा र म मा अनुमति हो रहा है, उस HERE THREE , रानी का
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