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वैवावृत्य तप
४४३ आध्यात्मिकः ऐश्वयं, अपार विभूतियां उनसे चरणों में लोटती रहती है। नम्वती, देवता और देवेन्द्र, एक नहीं, लाखो-करोड़ों-इन्द्र उनकी गरम-गया करते रहते है । तो यह दोनों चयापर्ती एवं तीर्थकर का महान पद प्राप्त होने के जो कारण हैं, जिस तपोबल से इन पदों की प्राप्ति हो सकती है उसमें एक मुख्य ता है सेवा, अंगावृत्त ! सेवा-मावृत्य के द्वारा आत्मा नमवर्ती का पद भी प्राप्त करता है, और उससे भी उत्कृष्ट तीर्थकर पद भी।
भगवान महावीर से एक बार गणधर गौतम ने प्रत्न किया-प्रभो ! आपने सेवा-वेगात्य का मतना महत्व तो बताया है, और धावृत्य करने का पूर्व उपदेश भी दिया है, किन्तु यह भी बताइये कि इस बचावल के द्वारा आमा को किस फल की प्राप्ति होती है ? उत्तर में धान ने कहा-.--.
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