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विनय तप
कि आज से हजारों वर्ष पूर्व भी जैन मनोपियों ने मानय के व्यवहार को इतना ऊंचा, इतना मधुर एवं विवेकपूर्ण बनाने का प्रयत्न किया है जिसे आज देख सुनकर भी आश्चर्य होता है ।
तीसरा चारिमविनय है । इसयो पांच भेद हैं । पाँच प्रकार के चारित्र का अर्थात् उन धारिम सम्पन आत्माओं का विनय करना चारिम विनय है।
भान विनय से ज्ञानी का सम्मान करने की शिक्षा दी गई है। दर्शन विनय से सम्पर प्रसासम्पर गुरुजनों आदि के प्रति व्यवहार को एवं चारित्र चिनम में बच्चारिसमा सदाचारी पुरुषों का बहुमान मारना, उनको सेवा, भक्ति, स्तुति एवं परिचर्या करना । दस प्रकार विनायक न तीन रूपों के द्वारा जीवन में सम्पूर्ण सदाचार एवं विनर को निक्षा की
मन बिनम से तात्पर्य है-मा पर अनुमान रखना । के दो भेद हैं--प्रशस्त मनविनय, अप्रात मनभिनय । न में पवित्र सीमा निशॉप, अत्रि (दुष्ट किया से रहित) भूगरों को बगनी करने वाले, दुगन को परिवार नही देने वाले, दूतों का नाव नही करने वाले और दुसरी हिमा नहीं करने बारे विचारों ने मन की भाति ना--प्रगतमा निम है। 3 सालो बात का विधान सभा मन दिलाई निराका स्याग करना। पास में प्रास न किस महीना है कि हमारा मन मा पनि निशे ए नारों से परिपूर्भ मन
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