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जैन धर्म में कोई भी शेष विनय ने अछूता नहीं रहा है। सम्पूर्ण जीवन को नानी सुवाम में महका दिया गया है जैसे पूजा के समय मन्दिर का कोना कोना नुगंधित धूप से महका दिया जाता है। साधना एवं गवहारसमस को विनय से प्राप्लावित करते हुए उसके विभिन्न भेद किये गये हैं। भगवती आदि नुनों में विनय के सात भेद बताये गए हैं
सत्तविहे विशए पगते, तं जहा--- णाणविणए, वंसविणए, चरित्तविणए, मगविणए
वइविगए, फायविणए लोगोवयारविणाए।' विनय सात प्रकार का है
१. भान विनय, २. दर्शन विनय, ३. चारिमविनय, ४. मानसिना, ५. वचन विनग, ६. कायविनय, ७. लोकोपचार विनय ।
भान विनय का अर्थ है-ज्ञान के धारक का मिना करना । मोति भान एवं शानी मूलतः एक ही है। शान आत्मा का लक्षण है, स्वल, गुम है । गुण गुणों में ही रहता है, इसलिए ज्ञान विनय कहने से अयं होता
मानवान का विनय करता। ___शानी ar विनय करने में दो मुग्न दृष्टिया है एक तो i (म भानी आदि पाचों ही मान धारक समाने चाहिए) का आदर करना नाyि . निरनमाजम, निस संघ एवं गम में, किसानों का आदर होगा, art at शानियों की पूजा होगी और उनकी बात सुनी जायेगी यह मंध, समान उमति करता रहेगा, यह कभी रुट में नही सेगा, भागवश :
भी माता भनी विधानसभा उमटने का . aar
आनी विद्वान ममामाकोस नानक