________________
४२१
प्रायश्चित्त तप
बस हृदय को मांजने को ही जरूरत रहती है। वैदिक ग्रन्थों में पाप-मुक्ति के लिए जहां ईश्वर की शरण में जाकर सब कुछ अर्पण कर देने का विधान है वहां जैन धर्म में हृदय को अत्यंत सरल बनाकर गुरुजनों के समक्ष पाप प्रकट कर उसके लिए तप:साधना करने की विधि है। क्योंकि कुछ दोष सिर्फ पश्चाताप से ही दूर हो जाते हैं और कुछ दोष तप, सेवा एवं विनय आदि के द्वारा। इसी दृष्टि से प्रायश्चित को तप मान कर उसका यह विस्तृत वर्णन सूत्रों में किया गया है और पाप मुक्ति का मार्ग दिवाया गया है ।