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प्रायदिवस तप
बालोचना के दोष
भगवतीमून में लालोचना के सभी पहलुओं पर काफी गंभीरता के साथ विचार किया गया है। जहां आलोचना न करने के प रिणाम दिखाये गये हैं, वहां आलोचना कर लेने के सुखद फल का भी वर्णन किया है । आलोचना लेने वाले और देने वाले की मानसिक गंभीरता विवेकशीलता और सरलता का वर्णन है, यहां यह भी बताया है कि बहुत से व्यक्ति मन सरल न होने पर भी लोगों में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए, विश्वास पैदा करने के लिए और गुरुजनों को प्रसन्न रखने के लिए आलोचना करने का अभिनय किया करते हैं । इसलिए वे लालोचना करने में भी कपट र मानक से काम लेते हैं। शास्त्रकार ने उनका
आलोचना का दोष बताया है | भगवती में बताया है कि यदि मन में सरलता न हो तो वालोचना करने में भी प्रकार के दोष नग
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जाते है
१ आपत्ति-वालोचना लेने वाला यह सोने कि जिनके पास आयोनाकर का है पहले उनकी सेवा आदि क
ताकि वे
होकर पानगे ।
का एक
को
जैने पहले रिश्वत देकर अपने पक्ष में
सेना आदि करके
देने जैसी मनोवृति है।
को
ही की जाती है वैसे ही मनोवृति को
प्रक्षेप
माना है।
२ घुमा-पते छोटे दीप की अनुमान अपने को वेष्टा करता कि आम
है
है
है,
अनुमान कालिका
ना।
● को
आजीवन अपना नवीन ।
* समरे (इन-निको