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प्रायश्चित्त तप
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. प्राय: पापं विनिदिष्टं चित्तं तस्य यिशोधनम् । -प्राय: का अर्थ है पाप और चिस का अर्थ है उस पाप का विशोधन करना । अर्थात् पाप को शुद्ध करने की क्रिया का नाम है-प्रायश्चित्त !
एक अन्य आचार्य के मतानुसार --'प्रायः' नाम अपराध का है । उनका पाथन है --
अपराधो वा प्राय: चित्तं-शतिः। प्रायस चित्त-प्रायश्चित्त-अपराधविशतिः ।
- अपराध का नाम प्राय: है और चित्त का अर्थ है-शोधन ! जिरा क्रिया से अपराध को शुद्धि हो वह प्रायश्चित्त है।
प्राकृत भाषा में प्रायश्चित्त को पायच्छित कहा जाता है । 'पायच्छित्त' शब्द को व्युत्पत्ति करते हुए आचार्य कहते हैं
पावं छिदइ जम्हा पायच्छितं ति भण्णइ तेण ।' - - 'पाय' नाम है 'पाप', जो पाप का छेदन करता है अर्थात् पाप को दूर कर देता है, उसे कहते हैं-पायच्छित्त ।
दण्ड और प्रायश्चित्त प्रायश्चित्त सी एन शब्द-परिभाषाओं में यही स्पष्ट होता है कि पाप की विशुद्धि के लिए, दोगको विगुद्धि के लिए जो क्रिया-(पन्नात्ताप एवं तपरगा) की जाती है उने प्रायश्चित्त कहा है। मनुष्ण प्रमादवश अनुनित कार्य कर लेता है, दोगसेवन कर लेता है, अपराध कर लेता है। किन्तु जिनकी आत्मा जागरूक होती है, पर्म-अप का विवेक रपती है, परलोकगुगार की भावना जिसमें होती है, यह उस अनुनिल आपरा के प्रति मन में पनाताप करने लगता है, यह दोष माटे यो मांति उसरे हदय में गटगाने लगता, और जोन में मौत पर माफी मुदि करने का प्रयत्न करता गरनो ने गमा अपना दोरन्ट करता है, जो उसने FE प्रालित की प्रार्थना करता है. और गुरन में से प्रायग्निरोग्य
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RIT १५३
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