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प्रायश्चित्त तप
बढ़ते जाओ! एक कठियारा था, जंगल से लकड़ियां फाटकार लाता, पेट पालता। कई पीढ़ियों से यही धंधा चल रहा था और यही हाल भी ! रोज लकड़ियां काटना, दो चार आना कमाना और रूसी-जुखी साफर नो जाना । विनारा दरिद्रता में जन्मा था और दरिद्रता की चक्की में ही पिसा जा रहा था।
एक दिन उसे एक सत्पुरुष मिला । कठियारे का हाल-बेहाल देखकर उसे धमा आई । उसने पूछा-तुम पना काम करते हो?
दीनता पूर्वक कटियारा बोला--"रोग लपादियां काटना, चना और मसी-गली पाकर दिन गुजारना ! बस यही काम करता है।"
गरण ने पूछा--"तकारियां गिरा जंगल में पारा काटने हो?"
पाहिमारे ने माया--"वहीं, पास में अंगन है, यही मरे यार में निकालियो काही मो, ही में नाट " . .. परपुल में सहा--म युज आने यही ! आगे जंगलमा
दिन छा गया, सेठी मी हि मिली।