________________
៤។
जैन धर्म में सप आदि का आवागमन काम हो । विषय वासना को जगाने वाले निम, आदि ... उत्तेजक कारण यहां न हों। __यहां प्रश्न सटा हो सकता है कि जैन धर्म तो भायवादी धर्म है, उसमें भावों पर ही अधिक महत्व दिया गया है, वस्तु, स्थान आदि गोण होते हैं। फिर यहां ग्रहाचयं के लिए स्थान बोत्र में क्यों अटक गया ! यदि साधक मा. मन निविकार है तो स्थलिभद्र जैसे गणिया तो नियशाला में चौमासे में रहकर भी निर्विकार रह गये, और मन कच्चा है, तो मिह गुफा में नार मास बिताने वाला साधक गणिका की चित्रशाला में एक दिन में ही विधस गया। नि बत्त रागस्य गृहं तपोयनं . बीत राग के लिए तो घर ही तमोयन है, "गन चंगा तो कटौती में गंगा", फिर स्थान को इतना महत्त्य गयीं दिया गया ? या समाधान करते हुए जैन आचायों ने कहा है-...
याएण . विणा पोओ
न घएइ महगयं तरि ! अच्छी अरसा जलयान (नाय) भी गया मा के बिना कभी महासागर में तैर गगता है ? नहीं ! वैसे ही शानी और अलग मोह वाला सापक भी . बिना योगर साधनों के गंगार सागर को नहीं करता --
निउणो वि जीय. पोओ
तय संजम मार विहणी मानुशल नाविक भी मान दिया है. . विन गम मार हो तर सो ? मा at माएको, गान की जानना मानने वाला मा मापनों के अभागिनी . गद
, निट पानपान भी पटाने पर मिली दूर दो गया : माना में
REET, infi