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• प्रति संलीनता तप
- मनोयोग प्रति संलीनता तीन प्रकार की है— जैसे
अकुशल मन का निरोध,
कुशल (शुभ) मन की प्रवृत्ति, मन को एकाग्र करना
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मन के रूप
मन का अर्थ है -- चिन्तन-मनन करने की शक्ति । दार्शनिकों ने मन की सैकड़ों प्रकार की परिभाषाएं की हैं, उनके भंवरजाल में उलझने से कुछ पल्ले पड़ने वाला नहीं है । मुख्य बात यह है कि कान, नाक, जीभ, आदि इन्द्रियों के विषयों का ज्ञान, तथा अनुभव मनन करने की जो चिद्शक्ति है वह मन है । मन एक प्रकार से इन्द्रिय- एवं आत्मा के बीच की कड़ी है ।
मन के अनेक रूप हैं, किसी समय मन चंचल रहता है, किसी समय स्थिर । कभी वह क्रूर एवं अशुभ विचारों की गंदी नाली में वहता रहता है, कभी शुभ संकल्पों की पवित्र धारा में । मन कभी साधु बन जाता है, कभी शैतान ! कभी भगवान में लीन हो जाता है और कभी विषय-वासना के कीचड़ में । इस तरह मन के अनेक रूप हमारे सामने आते हैं । वैसे साधारणतः मन चार प्रकार के बताये गये हैं- अर्थात् मन की ये चार अवस्थाएं होती हैं ।
१ चंचल मन - कामी, लोभी, विषय वासना में फंसे हुए मनुष्यों का । सत्ता, धन आदि की प्राप्ति के लिए तोड़-फोड़ आदि में संलग्न मन चंचल मन' हे |
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२ मुर्दा मन आलसी निष्क्रिय व्यक्तियों का मन मुर्दामन होता है । उसमें न सांसारिक विषयों की प्राप्ति की उमंग होती है और न प्रभु भजन, सच्चितन की लीनता । एक प्रकार से वह शांति तो चाहता है किन्तु सचेतन शांति नहीं, उद्यान को रमणीय शांति नहीं, किन्तु श्मशान की बीभत्स शांति हो उसको प्रिय लगती है । इसलिए मुर्दान्न कहा है ।
देशांत मन-मन सच्चितन में, प्रभु भजन स्तवन बादि में तमा २३