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________________ प्रतिसंलीनता तपं ३४६ संतोष से लोभ को जीतो __ लोभ को जीतने का एक ही मार्ग है और वह है-संतोप ! लोहं संतोसओ जिणे-लोभ को संतोप से जीतो। आग को शांत करने के लिए पानी की आवश्यकता है, भूख मिटाने के लिए रोटी की और रोग मिटाने के लिए औषधि की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार लोभ को जीतने के लिए संतोप ही एक मार्ग है। संतोप से मन की लाससाए, आशाएं कम होती हैं । वासना पर काबू पाया जाता है । विपयों से विरक्ति होती है, और जो वस्तु प्राप्त है उसी में आनंद का अनुभव किया जाता है । इस प्रकार संतोष के तीन फल सिद्ध हुए १ लालसाओं की कमी २ विषयों से विरक्ति ३ प्राप्त सामग्री में आनन्द हम अनुभव करते हैं और शास्त्र में भी बताया है कि मन की लालसाएं, आकाश के समान अनन्त हैं. असीम है ,सागर तल की भांति अपार है, कोई उन्हें भरना चाहे तो वैसा ही असंभव काम है जैसे सागर जैसे गड्ढे को मिट्टी से भरना । इच्छा वस्तु से नहीं भरी जा सकती है। रोटी खाने से पेट भर सकता है, लेकिन मन नहीं भर सकता, मन तो तभी भरेगा-जव अन्य वस्तुमिष्टान आदि की इच्छा नहीं रहेगी, और जो रूखी-सूखी रोटी मिले, उसी में आनन्द अनुभव होगा । योगदर्शनकार पतंजलि ऋपि ने कहा हैसंतोषादनुत्तमः सुखलामः जो सुख, धन, संपत्ति, अधिकार और प्रभुत्व से प्राप्त नहीं हो सकता वह सुख-"सर्वोत्तम सुख संतोप से प्राप्त होता है। संतोपी को सामने समस्त वैभव तुच्छ होते हैं-मुत्तीएणं अफिचणं जणयइ-निर्लोभता से हृदय में अकिंचन भाव - अर्थात् भोग्य वस्तु को तुच्छ व मारहीन समझने की बुझि जग जाती है, इससे भौतिक वस्तुनों का आकर्षण कम हो जाता है । १ इच्छा हुमागास समा अणंतिया-उत्तराध्ययन २ योग दर्शन २०१२ ३ उत्तराध्यपन २९४७
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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