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जैन धर्म में तप दी, सलाह के अनुसार प्रोफेसर ने अपने नौकर को कहा "मुझे जब कभी . गर्म देतो, तब खाली लिफाफा दिखा दिया करो।" .
बस, जब कभी प्रोफेसर को क्रोध आता नौकर खाली लिफाफा दिया देता–प्रोफेसर लिफाफे को देखते ही सोचने लग जाता-~ोधी का दिमाग इस खाली लिफाफे की तरह होता है, बस, इस विचार से धीरे-धीरे उसकी आदत छूट गई।
चीन में आज भी एक लोकोक्ति प्रसिद्ध है, क्रोध आने पर एक गिलास पानी पीलो । तथा ऋद्ध अवस्था में किसी के पत्र का उत्तर मत दो।
यह सब विचार व साधन अनुभव से देखे जा सकते है और जिस साधन से क्रोध की कमी हो, वह अपनाना चाहिए। कुल मिलाकर सारांश रूप में क्रोध को विफल करने के दो उपाग हमारे सामने आये हैं। (१) मोध के दुष्परिणामों पर विचार करना और (२) आत्मचिंतन करना । मात्मा वितन से मतलब है---मनुष्य एक और क्रोध की निकृष्टता समझे ग्रोध को चांडाल, राक्षस, अमेय, मूर्यता आदि विशेष दिये गये हैं, इनका अभी, शोध सबको दृष्टि में एक परम अपवित्र वस्तु है। दूसरी और अपने स्वरूप का-विचार करे कि यह मात्मा एक परम पवित्र वस्तु है, इसका और ईश्वर का स्वरूा एक समान है, तो फिर पवित्र मात्मा को शोध रूप अपवित्रता से, गंदगी से दुफ्ति क्यों कर ? इस प्रकार के वात्मचितन से प्रोध का नशा दूर हो जाता है।
ऐसा भी नहीं है कि कोष निफ अमानी व संसारी मनुष्य ही करते, किन्तु बड़े-बड़े जानी व सायक भी इस रोग से ग्रस्त पाये जाते हैं । देगा तो जावा है कि ग्राम्य में भी अधिक साधु सन्मामी व तपस्वीजनों में क्रोध अधिरः सोया से महकता है। इसीलिए तो संत तुलसीदास जी ने पहा ---
'तुलसी' इस संसार में गाड़ा सताईरा रोस ।
सात गाहा संसार में पैराग्यां में बीस ! मंगार में बताई गादा लोश है. जिम सारा गाडा ओर मुंभारी मनुष्यों में और बीजगाला यशानी या मामी नाम प्रगाने वालों में है। .
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