________________
३१८
- जैन धर्म में तप हजारों लाखों तरुणों का मन मोह रही है, कामी पुरुप जिसपर अपना सर्वस्त्र निछावर कर रहे हैं-वही सुन्दरी जवानी ढलने के बाद, लोगों को घृणा पात्र हो जावेगी । कोई उसकी तर्फ देखेगा भी नहीं। नगर सुन्दरी वासवदत्ता, . जिस पर किसी समय अंग मगध के राजकुमार निछावर हो रहे थे; बड़े-बड़े : .. सामंत जिसकी एक कृपा कटाक्ष के लिए तरसते थे, वहीं जब कुष्ठ रोग से . पीड़ित हुई तो नगर के बाहर उकरड़ी पर कूड़े की तरह फेंक दी गई और लाखों मक्खियाँ और कीड़े उस पर भिनभिनाने लगे ! यह है शरीर की सुन्दरता का अन्तिम परिणाम ! इसी प्रकार जो मधुर स्वादिष्ट भोजन किया जाता है, जिसके रसास्वादन के लिए मनुष्य अपने प्राण भी दे देता है, पेट में जाकर उसका क्या परिणाम होता है ? मल-मूत्र के रूप में कैसी दुर्गन्ध मय उसकी परिणति होती है ? तीर्थकर मल्लिनाथ ने गृहस्थ जीवन में अपने रूप पर आसक्त छहों राजाओं को जव एक मोहन गृह में बिठाया और उस कुंभी का ढक्कन खोला-जिसमें रोज एका-एक ग्रास भोजन डालती थी। तो उसकी .. दुर्गध से राजाओं का दम घुटने लग गया । मल्लीनाथ ने समझाया-"यह तो वही सुगंधित भोजन है, जो मैं प्रति दिन करती थी। किन्तु पेट में जाने के बाद वह कितना घिनौना और दुगंध मय बन जाता है कि उसकी दुगंध से ही सिर फटने लग जाता है।"
इस प्रकार भोग्य वस्तुओं की क्षणभंगुरता का विचार करने से मन उनसे विरक्त हो जाता है। वे विषय सामने आने पर भी साधक का मन वित्तल संचल नही होता!
दूसरा साधन है-भोगों के दुप्परिणामों का चिन्तन ! संसार के भोगशिम्पात फल के समान है, साने में मयुर ! परिणाम में प्राणघातक !
जहा फिम्पाग फलाणं परिणामो न सुन्दरो।' जो किपाक फल जाने में मोटा लगता है किन्तु उसका फाल होता है-.. मृत्यु । उसी प्रकार वियों, भोगों का परिणाम सदा अहितकर होता है।
meme