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________________ .. जैन धर्म में तप थी । उस ठंडक में एक सांप भी ठिठुर कर वेसुध पड़ा था। किसान के बच्चे ने सांप को देखा, कुतूहल वश पास में आया । सांप तो विल्कुल सिकुड़ा हुआ पड़ा था, उसने लकड़ी से हिलाया फिर भी सांप हिला डुला नहीं। बच्चे ने सोचा-सांप मरा हुआ है । चलो इसे घर ले चलें, बच्चों को डरायेगें, खेलेंगे उसने सांप को उठाकर अपनी थैली में डाल लिया। वह सांप वास्तव में मरा नहीं था, ठंडक के मारे सिकुड गया था, मूटित हो गया था। बालक घूमता-घूमता वहां पहुंचा जहां दस-पांच अन्य चरवाहे भी बैठे आग ताप रहे थे। वालक ने थेली गोदी में रख ली और आग तापने लगा। भीतर में सांप ठंड से ठिठुरा हुआ था, कुछ आग की गर्मी पहुंची, कुछ बालक के शरीर . की गर्मी, वह पुनः होश में आया, चैतन्य हुआ और थेली में हिलने लगा। बालक ने देखा, थेली में हिल क्या रहा है ? उसने खोलकर जैसे ही देखा, सांप ने उछल कर डंक मारा ! वस विचारा वालक वहीं ढेर हो गया। ___ तो यह मन मूच्छित हुआ सांप है । जब तक विषय विकार की गर्मी नहीं . पहुंचती वह मरा हुआ सा शांत प्रतीत होता है, किन्तु जैसे ही विषयों की . . संगति होती है विषयों के आनन्द को रसानुभूति होती है, बस विकारों का सांप फुकारने लग जाता है । रसानुभूति करके फिर अनासक्त रहना-~-बहुत कठिन है, साधारण साधकों के वश की बात नहीं, इसलिए पहली बात यह है कि उस रसानुभूति से मन को दूर ही रखना चाहिए । गीता में कहा है बलवान् इन्द्रियग्रामो विद्वांसमपि कर्पति । ... इन्द्रियों का समूह इतना बलवान है. कि विद्वान को भो, विचारशील पुरुष को भी चंचल बना देता है। विषयों की हलकी सी स्मृति भी मन में आसक्ति (संग) पैदा कर देती है, आसक्ति से काम, शोध, गम्मोहम्मृतिमा और अंत में सर्वनाम के कगार पर अत्मा पढेच जाता है।'' १ नीता ६० (स) मासन दशा में भी विषयों को स्मृति, मुग व स्वयम्पमा मनायोमेतित कर देती है लिए देनाका .. मावीको माता- निमीनमालागा २३५२
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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