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प्रतिसंलौनता तप एक मतंग द्रह था, उसमें अनेक मच्छ-कच्छ रहते थे। उस द्रह के पास में ही एक मालुका कच्छ नाम का जंगल था। उसमें अनेक हिंसक पशु छुपे रहते थे। एक दिन दो दुष्ट सियार शिकार की टोह में इधर-उधर घूमते हुए उस द्रह के पास पहुंच गये । द्रह के किनारे पर कछुए आजादी से दौड़ रहे थे। सियारों ने उन मांसल कछुओं को देखा तो मुंह में पानी छूट आया। वे धीरे-धीरे द्रह के पास आये, उनके पैरों की आहट पाकर दोनों कछुए वहीं अपने हाथ-पैरों को सिमट कर गुपचुप बैठ गए। पापी सियार वहां आये, देखा तो दोनों कछुए एकदम निर्जीव निश्चेष्ट से पड़े थे । हाथ-पांव सब भीतर में सिमटे हुए, अब पकड़े भी तो कैसे ?
सियार भी तो सचमुच रंगे सियार थे । वे झाड़ियों की ओट में जाकर छुप गये और कछुए के हाथ पांव फेलाने की बाट देखने लगे। थोड़ी देर बाद एक कछुए ने आंखें खोलकर इधर-उधर देखा, कोई दिखाई नहीं दिया तो सोचा-खतरा टल गया है, सियार कहीं चले गये हैं । उसने धीरे से अपना एक पांव बाहर निकाला । तभी ताक लगाए बैठे दोनों सियार उस पर झपट पड़े। सियारों ने उसके पांव को पकड़कर नखों से उसे छील डाला, दांतों से काट डाला, धीरे-धीरे उसके चारों पांव बाहर निकले तो वे उन्हें काट-फाड़ कर खागए, उसकी गर्दन भी नोंच डाली । कछुए को खत्म कर डाला।
अब वे दूसरे कछुए की तरफ बढ़े, लेकिन वह तो पहले की भांति-चुपचाप पड़ा रहा, न हिला-डुला, न हाथ पांव बाहर निकाले । दुष्ट सियारों ने उसे भी नोंचने की जी-तोड़ कोशिश की, मगर उसने अपने हाथ-पैर छुपाए रखे, इसलिए उसका वाल भी वांका नहीं हुआ। पापी सियार हार खाकर चले गये । फिर खतरा दूर हुमा समलकर उसने आंखें खोलकर चारों तरफ देखा, फिर धीरे से गर्दन बाहर निकाली, और एक साथ चारों पर फैलाकर तेजगति से दौड़ा, झटपट वह अपने मतंगद्रह में जाकर छप गया । स्वजन-मित्रों से अपने साथी की दुर्दशा सुनाई, उसकी मृत्यु पर दो आंसू बहाकर चुप हो, गए । नौर वह कछुना आनन्द से अपने घर में जीवन बिताता रहा ।
पहले कछुए की मांति जो साधक इन्द्रियों पर संयम नहीं रख सकत ।
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