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... नर्म में सर .
पर बल दिया गया है। कायोलागं का विस्तृत वर्णन भी यहीं पर किया जायेगा । सामान्यतः कायोत्सर्ग का अर्थ है-काय-शरीर, उत्तान--सांग, मीरा त्याग । शीर त्याग का अर्थ-शरीर से मुक्त होना नहीं कि शरीर की गमता से मुक्त होना है। शरीर की ममता ही गयो बहा गया है। मायोत्सर्ग में साधक---- रागद्वेप से रहित होकर अन्तर्मुसको जाता है। आदचितन में गहरा डूब जाता है । तब उसे शरीर की मुधि भी नहीं रहती। परीर को मच्छर काटते , या कोई नन्दन आदि का शीतल ला गारवा हैगिसी भी स्थिति में यह गरीर की निता रो नलित नहीं होगा । कोरसगं प्राय: जिन मुद्रा (दोनों पैरों के बीच बार अंगुल का अंगर सार गोधे गम अवस्था में पड़े रहना-जिन मुद्रा है) में ही किया जाता है। इसका उद्देश्य है शरीरको ममता, एवं मंगलता यो गास कार ने स्थिरता - . पूर्वक आत्मलीन होना योगदर्शन के अनुसार इसमें आया और शान होनों साधनाएं एक माद चलती हैं।
मनाइए---का अयं हे स्थानायत । मिरा लान पर बैठा तो टा . रहे, मला है, तो मला आयात जिस अवस्था में गाया, उसी परमा में सिर महर र पोगों को संचलता कम करें। इसका एक मात्र आमज म्यागायत) लार (ट) की तरह गिर पकाको । योगों में भावनगलता को दोरना ही।
मामा को माता .
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