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________________ कायपलेरा तप यह मानवादी यगंन ही कायरोग तप का आध्यामिका माधार है। इस चितन से भरीर के प्रति अनामतिअनमत्व प्राटा भरीर को धनभंगुर माना और उगानंगुर सत्य से जितना सामोकार हो सके उतना फार लेना चाहिए-म भायना ने फापरलेस इन्द्रिवदना आदि सर को महत्व दिया । जिन माघर ने मारमा और देह का पृषफल महो मा में सा लिया, उसके ना में बहानाति, देहायाम कम हो जाता, फिर देशो लए भी गा, गिट अवस्या को प्राप्त हो जाता है. श्रीमद् राजा के ब्दों में-- ह सा मेहनी बसा घरते देहातीत ! रोप भी देहाती पला प्राप्त करने की कला नो हारमार मे मिला। कानावंही घटना हमारे सामने हैं. नि. पार गो मियों को पार कर पानी में पीस दिगा गया, fort पौधे की तरह ! किन्तु जन गानों में नाम नहीं किया। पों? लाहिर देश को पीटा तो होगी ? ए गुई नमन से ही शरीर में मिला ना तो वहां बरीर को पानी में . सागर सोमनाया पोटा नहोलो ? भामंही परी सारी ntीर को छोड़ दिया गया जो पावर का शाहीको छोरो ? किर भी परा--- स्यारी पारी भनि- म्हारी हो, रहा मेरो सार मह मोमा परोपहा । H srfry महो रहामा गत मुन मियो' पारा। EIR में होने चोरी का rikar गई और महान Tifrre में fry को TET ___ को माग ram rana Kera Tesent E-ma.
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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