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जैन धर्म में तप १. शव्या ---निवास स्थान अथवा सोने की भूमि का कष्ट । १२ आमोश दुर्वचनों का म.प्ट । १३ बघ-लमही नादि की मार। १४ याचना--भिक्षा आदि मांगना । १५. सलाम ... मांगने पर भी नहीं मिलना । १६ रोग-~ोग आने पर समभाव से सहन करना। १७ तणस्पर्श-चारा आदि के पर्ण का कष्ट । १८ जल्ल-शरीर पर मैल आदि का काप्ट (अस्नान)। . १६ सत्कार-पुरस्कार-पूजा-प्रतिष्ठा को सम्यक रूप से सहना-अर्थात
उन पर पालना नहीं। २० प्रज्ञा--बुद्धि का गर्व न करना। २१ अज्ञान-बुद्धिहीनता अषया अजानकारी का दुष्प सहन गारना। ..... २२ वर्शन परोपह सम्यकत्व से भ्रष्ट करने वाले मिथ्या मतों का
मोहक वातावरण देखकर मन को स्थिर राना। .. ये बाईस पीपद हैं जिनमें दोनों प्रकार के ही परोपह आये है..गरी केशारा होने वाले और अपने मन में स्वीकार करने वाले नी । इन उपमनों को, काष्टों को सम्मान नीति से सहमा परीपह है। माय में कहा है -
पहें पिया दसिज्ज सी-उन्हं अरई भयं ।
अहिपाने अध्यहिओ देदुपा महाफलं । ... भूख, प्यास, दुःशया, सर्दी-गर्मी आदि और भय आदि काटी को मापा अर्थाित् अमन मन में मान गरें, गोंकि देश का मास्ट सहन करना महापागा--- गाय गर्म निजामा
---. दु महासन'TTri , ... मी दुगना मालाकार में मा, अन टिम बोट कार पर काट माना और थामनी
gो को काटना, मोर का मन करते हैं. हम