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रस-परित्याग तप
शरीर यात्रा के लिए
या रस का सर्वथा निषेध है ? भोजन आवश्यक है, बड़े से बड़ा साधक बर तपस्वी भी बिना भोजन के साधना नहीं कर सकता | इसलिए साधक की भोजन का निषेध नहीं है, वह भोजन कर सकता है भोजन करना कोई पाप नहीं है, वह भी धर्म साधना का एक अंग है, किन्तु भोजन में एक शर्त है, और वह शर्त है सात्विकता ! भोजन ऐसा होना चाहिए जो सात्विक हो, जिस पदार्थ के खाने से गत में विकार व तन में रोग, पोटा बाद उत्पन्न न हो। इसलिए यही भोजन करना चाहिए जो शालिक हो, विकारजनक न हों और संयम साधना को दूषित न करें।
शरीर के लिए पौष्टिक बाहार बंधा वर्जित नहीं है। क्योंकि वत्यंत राव नीरस आहार शरीर को दुर्बल व बता बनता है। को तेल व बक्षी की जरूरत होती है बसे ही शरीर को भी शुरू ना शक्ति आहार को अपेक्षा रहती है। कहा है-
पुष्ट गुराफ बिना नहीं बनता से दिमाग । सेल और बत्ती fart पैसे जसे fचराग ?
सदा स्वानुया नीरस आहार करने में जमाती याम कभी रोगी हो गया है। अमे पोष्टिक आहार कर लिया दिवसे
विनिषेध भी नहीं है।
सो उसमें कोई दोष नहीं, किन्तु
अधिक पौष्टिक आहार का सेवन नही करता हि (1) #sam i fa a fun ala wait: an fan af at her
वह पापी भगण है 1
यात्र का निषेध
कवि
आप भी स्ट्रयाः किभर है। गाय में कमाया है from sim ह प्रखता है। अन्य अमी
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