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भिक्षाचरी तप.
अपने राज्य में स्थान-स्थान पर भोजन शालाए गुलवाई थी, और महानमिकों (रसोदलों) को आदेश दे दिया था कि कोई भी श्रमण बाहार के लिए आये तो उसे आहार दिया करो, मैं तुम्हें बदले में उचित सत्कार दूंगा। नगर है. लेल, वस्त्र आदि ने विक्रेता दुकानदारों से भी राजा ने कह दियाश्रमणों को जो भी वस्तु चाहिए वह दै दिगा करो। उगका मूल्य राजकोष में दे दिया जायेगा।
कुछ श्रमण जय इस प्रकार का निमिछा, व त्रीत दान लेने लगे तो मायं महागिरिको यादहमा । उन्होंने कार्य हस्ति से पहा - "आर्य! हमें इस प्रकार का अधिक लाहार नहीं लेना चाहिए !" ___ आय गुहस्ति में समय का प्रभाव बताकर या नियम में गुछ उपेक्षा दिखाई। महा--- राजा धर्मानुरागी है, अत: जनता भी उसका अनुकरण गारती है, इसमें एंनी माग गया बात है?
मानहागिरि ने नहीं ! साधु गो उपयाग नादि कर पर रस्थान देना शक्ति है, किन्तु अनैपनिक आहार नहीं ना चाहिए!' आर्य मानित पर आगरा के पारण प्रमों को हम प्रसारमा आहार नेता मा प्रति मार दिया गया।
सोनार थमन प्रजा परिस्थिति में अपनी भिक्षावरी को गुमर निदाद मारन गो निवाने में प्रश्नगीन रहना। उसमा
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