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जैन धर्म में तपः २ निक्षिप्त चरक-भोजन पात्र से निकाल कर अन्य पान में डाले हुए
आहार को ग्रहण करने वाले। ३ उत्क्षिप्त-निक्षिप्त चरफ-रांधने के पान से निकालते हुए भोजन को
खाने के पात्र में लेते समय मिले तो ब्रहण करने वाले। . .... ४ निक्षिप्त-उत्क्षिप्त चरक-एक बार निकाला हुआ आहार पुनः भोजन
पात्र में डालकर दूसरी बार निकाला हुआ आहार लेना । ५ वर्तमान चरक-खाने के लिए थाली में परोसा हुआ आहार लेना। ६ साहरिज्जमाण चरक - ठंडा करने के लिए चाली आदि में लिया
हो, उसे पुनः यतन में डाल दिया हो, वह आहार ग्रहण करना ! ७ उपनीत चरफ-पास में लाकर देवे,अथवा गुण-प्रशंसा करते हुए देवे । ८ अपनीत घरफ-सामने से दूर हटाकर लेजाकर देवें, भयया साधु
की निंदा करते हुए देखें। ६ उनपीत अपनीत चरक-पहले पान में लागे, फिर दूर ले जाये, ___ अथवा पहले प्रशंसा करे, फिर निदा करके आहार देवे । १० अपनीत-उपनीत घरक-६ का विपरीत । ११ संसृष्ट चरक -आहार आदि से लिप्त हाय व कुडली में आहार देखें।
तो लेना-~ोमा अभिग्रह करने वाले । १२ असंतृप्ट घरमा -- अलिप्त हाय में आहारादि लेने वाल। १३ तज्जात संमृप्ट घरया-जो पदार्थ दे रहा है, उसी पदार्थ में काम
लिप्त हो और तब देवे तो लेवें । १४ सज्ञात चरक ... अगनिचित परों से आहार लेना। १५ मौन चरस...मीन पूर्वर आzr मारना ।। १६ सप्टलापिय-~-जिस शस्त या साया पर समष्टि की
यमिक तो मान सम्मा। १५ अदृष्ट लाभिएः - जो आहार मामने दिया गया हो, अपना को
पहले कभी नहीं होगा मिले तो ना करना । .