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... जैन धर्म में तप चाहिए, खाने के समय खाना चाहिए और सोने के समय सोना चाहिए । देश व क्षेत्र की प्रथा बदलती रहती है, देश की प्रथा के अनुसार जव मध्याह्न . में भोजन बनता था तो भिक्षा का काल भी मध्यान्ह था, अब यदि देवा को प्रथा दूसरे पहर में भोजन बनाने की हो गई और भिक्षु फिर भी तीसरे पहर को पकड़े रहे, उसी समय भिक्षा के लिए निकले तो वह तो अकाल वर्या हो गई ! जबकि 'अकाल चर्या' को छोड़कर काल चर्या का अनुसरण करने का स्पष्ट आदेश है। इसीलिए शास्त्रों में-सेत्त कालं च विन्नाय- . क्षेत्र और काल को जानकर आचरण करने की सूचना दी गई है। इन सब बातों पर विचार करने से यही प्रतीत होता है कि जिस देश में, जिन समय लोग भोजन करते हों उस समय भिक्षा के लिए निकलना भिक्षागरी का काल है, और उससे पहले या पीछे जाना, अकाल चर्या है। ...
छेद सूत्रों में तो भिक्षा का काल सूर्योदय मे सूर्यास्त पूर्व तक बतलाया गया है, पर इनका यह अर्थ नहीं कि भिक्ष. दिन भर ही भिक्षा के लिए घूमता रहे। इसका माशय यही है कि दिन के समय में जब जहां मिक्षा की प्राप्ति का उचित समय हो, तब वहां भिक्षा के लिये जाये।
भिक्षा फी विधि मिक्षा का काल प्राप्त होने पर जब भिक्ष भिक्षा के लिये जाये तो गरी जाना चाहिये ? किस प्रकार गृहस्थ के घर में प्रवेश करना और किस प्रकार की वृत्ति रसना--यह भी एक महत्वपूर्ण बात है। शास्त्रों में इन विधी का भी बहुत विस्तार से वर्णन मिलता है।
भिक्षा में निय जातो हुए मुनि को सबसे पहले- असं तो अमुटियो - अगसांत और अन्छिन होना चाहिए । भिक्षा का समय होने पर मन नंबर नही कोना नामिनि नली, सबसे पहले गृहत्य में घर में जाकर शिक्षा ले! गुने पहले अन्य कोई भिक्ष यह न पहन जामे ! दिमाग कोई गईनगा तो वही स्वादिष्ट आहार पान आदि में जायेगा, और मो . MATो गा । इस विचार से मन में जनता बाली , मन . चन होगा मोकामादिको लीग में प्रतिमान कर