________________
[
२०
]
--मालवकेसरी श्री सौभाग्यमल जी महाराज
'जैन धर्म में तप स्वरूप और विश्लेषण' का विहंगावलोकन करने पर ऐमा प्रतीत होता है कि इसमे मरुधरकेशरी मिश्रीमलजी महाराज का मौलिक चिन्तन और विचारो के ज्योति कण पद-पद पर विखरे पड़े हैं । प्रस्तुत पुस्तक ताप-तप्त इस विश्व-मानव को अपने आध्यात्मिक विचारो और फ्रान्तिकारी सुझावो से आत्मा पर बैठी अज्ञान की परतो को हटाकर शान्ति, मदभाव नौर स्नेह का शीतल अनुलेप प्रदान करने में समर्थ होती है।
प्रस्तुत पुस्तक तप के विशाल विराट स्वरूप को लेकर लिखी गयी है। इसके प्रत्येक पृष्ठो पर तप का मूल्याकन आलोकित हो रहा है । तप, त्याग, और सयम प्रधान साहित्य से हमारा जीवन उत्तरोत्तर विकसित होता रहे यही शुभेच्छा ।