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मिक्षाचरी तप के समय गृहस्य के द्वारा लगने वाले दोष । अतः इनका निमित्त गृहस्य होता है।
१ आहाफम्म-माधाकर्म-साधु के लिए बनाना। २ उद्देसिय-औद्देशिक-सामान्य याचकों के लिए बनाना । ३ पूइफम्म-पूतिकर्म---शुद्ध आहार को आधाकर्मादि से मिश्रित करना। ४ मीसजाय-मिश्रजात-अपने और साधु के लिए एक साथ बनाना । ५ ठवणा-रथापना- साधु के लिए अलग निकाल कर रख देना । ६ पाहुडिया-प्राभृतिका--साधु को गांव में लाया जानकर उन्हें विशिष्ट
भोजन बहराने के लिए जीमणवार, पाहुने आदि का
समय आगे-पीछे करना। ७ पाओयर---प्रादुष्करण-अंधकार युक्त स्थान में दीपक आदि का
प्रकाशकर भोजन भादि देना। ८ फीय-गीत-माधु के लिए खरीदना । ६ पामिच्च-प्रामित्य -- साधु के लिए उधार लाना । . १० परिय टिब-परियतित-साधु के लिए बाटा-साटा करना। ११ अभिहट अभिहतमा के लिए दूर मे लागार देना । १२ उभिन्न उभिन --लिप्त पाम का मुह सोलकर पृत आदि पेना । १३ मालोहड़-मालापहत----पर पी मंजिल से या छीके वगैरह से
मोदी भादि से उतार कर देना। १४ अधिग्ज-आन्दर-दुयन ने छोग पार लगा। १५ मिसिह-अनिलष्टमा की चौ बिना दूसरे साथी की मात्रा
देना। १६ अशोरय-
साधु गो गांव में आया जानकर अपने लिए बनाये जाने वाले भोजन में और अधिरः यहा देना। न आ ने बहा योप माना गया के लिए मनाया. TET HTET पनाने में, में if आदि 3, TER HIT ने मामा-मामा नलिए