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जैन धर्म में तप
धर्म की साधना कैसे होंगी ? इसलिए साधक को शांति प्राप्त करनी हो तो
कलह शांत करना होगा ।
कई कारण हो सकते हैं—स्वार्थ में बाधा आने पर, कलह होने इच्छित वस्तु न मिलने पर अहंकार पर चोट पड़ने से तथा लेन-देन के विषय । ये सभी बातें मनुष्य के कपायों से सम्बन्धित हैं, इसलिए प्रारम्भ में कपायों की कमी करने का उपदेश किया है । कपाय की कमी होगी तो कलह का प्रसंग आने पर भी मनुष्य अपने मन को समझाकर उसे टाल देगा । - कलह से बड़े-बड़े साम्राज्य नष्ट हो गये । कौरवक्योंकि वह जानता पांडवों का विशाल साम्राज्य परस्पर के कलह के कारण ही नष्ट हुआ है ।
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नीतिकार का कथन है
कलहान्तानि हम्र्म्याणि कुवाक्यान्तं च सोहृदम् । १
कुवचन से मित्रता का नाश हो जाता है, और कलह से कुटुम्ब का क्षय । जो भारत सोने की चिड़िया कहलाती थी, और जहां बड़े-बड़े पराक्रमी राजा हुए, वह भारत भूमि म्लेच्छो, अनायों और मुसलमानों के पैरों से क्यों रोंदी गई ? यहां का वैभव क्यों लूटा गया ? यहां के स्वर्ण-रत्नजटित मंदिरों की पवित्र मूर्तियां क्यों तोड़ी गई और क्यों लाखों हिन्दू मुसलमान बने ? क्यों हिन्दुओं का रक्त वहा और उनकी सभ्यता, संस्कृति, धर्म, भक्ति पूजा आक्रमणकारियों के पैरों से क्यों कुचली गई ? सिर्फ एक ही कारण है— आपस का कलह ! फूट ! आपस के कलह से, द्वेष से कुछ हिन्दुस्तानी वीरों ने विदेशी आक्रमणकारियों को बुलाया, उन्हें सहयोग दिया - और एक दिन वे नाकांता उन्हीं को, उनके बंधुओं को दास बनाकर हत्या करके मालिक बन बैठे |
जैन शासन जो एक दिन महान तेजस्वी धर्म शासन था । आज कितने टुकड़ों में बंटा है ? कितने गंप्रदायों में गुण्डा हो रहा है? उसका प्राचीन गौरव कहां लुप्त हो गया ? उनका कारण यही है- परस्पर का कलह ! साधुओं का कलहू ! श्रावकों का कलह ! इसी से जैन धर्म के टुक टुकड़े हो गये ! ओगवान जाति छिन्न-भिन्न हो गई ।
१ पंचतंत्र २०७३