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जैन धर्म में तप थोड़े शब्दों में कही जाने वाली बात को अधिक लम्बी न करें।
नाइवेलं वएज्जा मर्यादा से अधिक न बोले ।
अप्पभासी मियासणेसाधक कम बोलने वाला और कम खाने वाला हो ।
जो अधिक बोलता है, वह सत्य वचन की आराधना नहीं कर सकता क्योंकि सत्य वचन और वाचालता में परस्पर विरोध है। कहा है
___ मोहरिए सच्चवयणस्स पलिमयू ।२।। मुखरता-वाचालता सत्य वचन का घातक है । जो वाचाल होता हैवह सर्वत्र निंदा, अपमान और तिरस्कार प्राप्त होता है । उत्तराध्ययन सूत्र में बताया है -जैसे सड़े कानों वाली कुतिया जहां कहीं भी जाती है, वहीं लोग उससे घृणा करते हैं, दुत्कारते हैं और दुत्कारने पर भी नहीं निकलती है तो डंडे मार-मार कर निकालते हैं-जो वाचाल होता है, उसकी भी संसार में यही दशा होती है -मुहरो निक्कसिज्जइ----वह वाचाल-लवार व्यक्ति कुतिया की तरह सर्वत्र दुत्कारा जाता है । राजस्थानी में एक दोहा है -
वह बोला वेश्यां घणी, दोय गांव अधवार ।
तिण ने कांई मारसी मार गयो फरतार । बहुत बोलने वाला, वहत बेटियों का बाप और जिसका दो गांवों में रहना हो-एक पग यहां एक पग वहां-उसे किसी को मारने की जरूरत हो गया है, भगवान ने ही उसे मार डाला है । अर्थात् बढ़त बोलने वालाअपनी आदत से स्वयं ही बर्बाद हो जाता है, उसे वर्वाद करने के लिए किसी तो कुछ प्रयत्न करने की जरूरत ही क्या है ? तो बहुत बोलने वाले की बहुत युदंशा होती है, इस कारण साधक को कम-से-कम बोलना चाहिए।
१ मतांग ११४१२५ २ स्थानांग ६१ ३. उत्तराध्यापन १४