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उतनी कर्म निर्जग नहीं कर सकता। साधु तेले में जितने कर्म सपाता है,
सकता और साधु
नैरविक जीव करोड़ों वर्ष में भी उतने कर्मक्षय नहीं कर एक बोला करके जितने कर्मों का क्षय कराता है, करोड़ों-करोड़ वर्षो में भी उतने कर्म नहीं सपा सकता।"
नैरविक प्राणी तो
अनशन तप
प्रभु ने इसका उत्तर दिया है। इससे उपवास का कितना महत्व है ? कम कितना गौरव है ? उपवास की गरिमा बताते हुए कहा गया है-
गौतम स्वामी ने यह प्रश्न राजगृह में भगवान महावीर से पूछा है, और पता चलता है, जीवन में एक शुद्ध करने की दृष्टि से एक उपवास का
तप से तन रोग मिटे सगले, सगरे मध जीत रहे उनको, जप में मन लागत है ससरो, सब चंचलता ज मिटे मन को । प जाय कठोर विधानस हो, फमतो न रहे उनके धन की, 'मिसरी' कर एह ज मोद भरी शिव पावन वाह जिनकी ।
तेज घई निज देह को, निश्चय विपदा नाश | फूट मिटायन फूटरो यो जग उपयात ॥ शुद्ध भाव जो निज करत मुनि गुनि जन है जान | arrafafa स परे हो जग उपवास ॥
अनशन में निषिद्ध का
बताया गया है, कविता
उपवास आदि का जो महान है ? जबकि तब को विधि विवाय । उपवास में आहार का इसका अर्थ यह नहीं कि आहार ही मात्र में उपवास का पूर्ण पनि जाता है। आहार के
होता है,
दे
साथ दिन
का, शोष बादि प्रधान
है।
व
है उपवन में तीन कार्य करो और तीन कार्य करो !-तीन
करो
कान
१ भगवती मूव ग४