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बनमन तप
एक
न तो मिट्टी काल सफेद है, इससे का गदा कारण ?
१६५ जैसा साये अन्न वसा होये मान । जंसा पीवे पानी वसो योले बानी।
जैसा अन्न जल खाइये तैसा ही मन होय ! एक. प्राचीन उक्ति है कि एक राज सभा में राजा ने विद्वानों से एक प्रश्न पूछा-दीपक तो मिट्टी का बना हुआ है, उसका रंग लाल है, तेल पीला है, उसमें नई की बातो बिल्कुल सफेद है, इससे जो ज्योति प्रगट होती है वह भी लाल है, किन्तु काजल काला होता है, इसका क्या कारण ? जय अन्य कोई चीज काली नहीं है तो उनसे उत्पन्न होने वाला काजल ही काला क्यों ? फज्जले श्यामतां फयम् ? राजा के प्रश्न पर मनी विद्वान मौन होकर सोचने लगे । तभी एक अनुभवी विद्वान उठा, उसने कहा-महाराज ! आपका प्रश्न ठीक है, तेल पीला है, वाती सफेद है, ज्योति लाल है, फिर गज्जत काता पयों ? किन्तु महाराज ! जैना आहार होता है वैसा ही नीहार होता है, जैसा अन्न साते हैं वैसी ही उकार आती है
योपो भक्षयते ध्यान्तं फग्गलं च प्रसूयते ।
पदा भक्ष्यते नित्यं जायते ताइशी प्रजाः मापको माग है दीपक का भोजन पचा है ? वा अन्धकार को निगलता है, इसलिए वह काला काजल पैदा करता है। काले अन्धकार को लाने वाना तो गाला माजत हो पैदा गारेगा । मफेदी बाहों में आयेगी?
तो कपि का यह उत्तर शरीर और मन पर अन्नमा प्रभाव बताता है। जैगा भोजन किया जायेगा धनी हो बुद्धि पंदा होगी। आपने माता मृग में मुनी भीक और पंटनी की कथा । सरोक राजा ने दीक्षा लेकर हजार वर्ष तपः फाठोर गरया के शरीर को गला दिया । मिना एका कार उस ये भाई की ताजपानी में आये पा रामा उनसो भनि पाने नगा, राजा गो देशमार लोग भी भक्ति करने लगे। सदन म्यादिष्ट सातार मिनने लगा। पूनार सम्मान मिला। म गमग-स्वादिष्ट भोटमले पर रोष मुनि कंग गार वर्ग की माया
र पाप नीति