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________________ . ... जैन धर्म में तप .. में उन्होंने सिर्फ ६७५ दिन 'ही आहार किया । अर्थात् ६० वर्ष में तीन... वर्ष से भी कम माहार का समय रहा, बीस वर्ष में १ वर्ष से भी कम (१० मास २० दिन) ही सिर्फ आहार ग्रहण किया । कितना महान व दुधपं . . . तप था उनका ! ___आचार्य रघुनाथ जी म० के गुरु भाई पूज्य जयमल्ल जी म० भी एक महान तपस्वी साधक थे। वे सोलह वर्ष तक निरंतर एकांतर तप करते . रहे । उनके जीवन में एक और महान संकल्प था जो बड़ा उग्र तपश्चरण कहा जा सकता है । जब (संवत् १८०४) श्रद्धेय गुरुवर श्री भूधर जी म० का स्वर्गवास हो गया था तो आपने एक वनसंकल्प लिया कि-'आज से आजीवन सोकर नींद नहीं लूगा ।" आप इस तप की ओरता अनुभव कर सकते हैं कि मनुष्य एक दिन भी यदि आराम से नहीं सोने पाये तो शरीर पर आलस छा जाता है, काम करने का मन नहीं होता, हाथ-पांव टूटते से लगते हैं, जिसमें एक दो वर्ष नहीं, लगभग पचास वर्ष तक, बुढ़ापे में भी कभी सोकर नींद नहीं ली। ___भोपत जी तपसी, श्री वेणीदास जी म०, वेणीचन्द जी म० मादि अनेक तपस्वियों की उज्ज्वल परम्परा आज भी हमारे समक्ष है जो जैन धर्म में . तप के महत्व को उजागर कर रही है। यह बात नहीं है कि सिर्फ स्थानकवासी परम्परा में ही महान तपस्वी .. . हुए हैं-श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समाज में भी अनेक आचार्य, साधु-साध्वियां सुदीर्घ तप करने वाले हुए हैं, तेरापंथी समाज में भी अनेक साधु साध्वियों .. तथा श्रावक-श्राविकाओं के सुदीर्घ तप की बातें हम सुनते आये हैं। ये गंभी तंगवी जैन धर्म के गौरव को, तप की महिमा को बढ़ाने वाले हैं और .. जगाधर्म को तप परम्परा को बादरणीय, प्रशंसनीय गाड़ियां रही है। वमान में भी सभी परम्पराओं में ऐसे तपस्वी संत, गतियां, गहस्य जो बाज के भौतिकवादी युग में सनमुच में अध्यात्म युग का गमलार
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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