________________
१२७
१२७
ज्ञान-युक्त तप का फल
कसिके कमर तप, भिक्षु-प्रतिमा को धारी
___ श्वसुर की रीस सारी ध्यान तें गमारली। मृदुल पट्टी के पेच कसूबल रंग वारी
आग हू की पाल धन्य शीस पर धारली। घोर पाप कर्म करने वाले अर्जुनमाली ज्ञानपूर्वक तप करते हुए सिर्फ छह मास में ही केवलज्ञान प्राप्त कर मुक्त हो गये !
आचार्यों ने बताया है, वाल तप चाहे जितना कठोर, दीर्घकालीन और निष्काम भाव से किया जाय उसमें मुक्ति हो ही नहीं सकती
___ न हु बाल तवेण मुफ्छु त्ति हमने पूर्व में ही बताया है कि साधक के सामने तप साध्य नहीं, साधना है, साध्य है मोक्ष ! जिस साधना से साध्य की प्राप्ति न हो वह साधना वास्तव में साधना नहीं, विराधना ही है । जिस तप के करने से मोक्ष की प्राप्ति न होती हो, उस तप से लाभ क्या ? स्वर्ग, भौतिक वैभव, सुख समृद्धि भले ही मिल जाय, किंतु इनसे तो आत्मा का हित होने वाला नहीं है । ये तो पुनः कर्म बंधन के कारण होंगे और पुनः पतन होगा। ज्ञानी साधक यदि मरकर स्वर्ग में भी जायेगा तब भी वह सुखों में आसक्त नहीं होगा । आत्म ज्ञानी तपस्वी लन्धि प्राप्त करके, समृद्धिशाली बन करके भी उसका दुरुपयोग नहीं करेगा, इस कारण वह सुख भोग कर भी पुनः तीव्र कम बंधन नहीं करेगा। इस कारण तपःसाधना के फल में हमें यह विचार करना है कि तप चाहे अल्प ही क्यों न हो, पर जो हो, वह विवेक पूर्वक हो, अन्तःनि से किया जाय । वही तप मोक्ष का साधन बनेगा। अन्यथा तप, ताप बन जायेगा, केवल देह दंड मान रहेगा, इसलिए सर्व प्रथम ज्ञान पूर्वक तप करने की साधना जीवन में आनी चाहिए । यही तपोविवेक है ।
साधक यदि मरकर पलब्धि प्राप्त करके,
कर भी पुनः तीन
। साचारांग नियुक्ति २४