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जैन धर्म में तप की । उसके सामने, तो बस एक ही संकल्प रहे कि मैं अपनी आत्मा को विशुद्ध व उज्ज्वल बनाने के लिए तप करूं । तपःकर्म में इस प्रकार को निष्कामता जिसे जैनधर्म में अनिदानता कहा है-इसे ही प्रभु ने श्रेष्ठ बताया है। साधक हमेशा, इसी वाक्य को याद रखकर तपः साधना करता रहे
सव्वत्य भगवया अनियाणया पसत्या'.. भगवान ने साधक के लिए निदान रहित तपः साधना ही प्रशस्त । बताई है।
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१ देसे स्थानांग ६, व्यवहार ६, भगवती मातासूत्र आदि में भी।