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ज्ञान युक्त तप का फल
| साधना किसलिये की जैनधर्म में तप को एक साधना माना गया जाती है ? साध्य को प्राप्त करने के लिए ! साध्य क्या है ? साध्य है मुक्ति ! मुक्ति क्या है ? आत्मा का निज स्वरूप में स्थिर होना - स्वरूपायस्यानं मुक्तिः - आत्मा का अपने स्वरूप में, अपने ज्ञान दर्शन - चारित्र आदि गुणों के विकास की पूर्ण स्थिति में पहुंच जाना ही मुक्ति है । अतः यह स्पष्ट हुआ कि मुक्ति रूप साध्य को प्राप्त करने की साधना है तप !
कुछ साधक परमात्म-दर्शन की बात करते हैं । भगवत् स्वरूप की प्राप्ति अथवा भगवत्स्वरूप के दर्शन की तीव्र अभिलाषा लेकर साधना करते हैं । इस विषय में में कहता हूं, भाई ! परमात्म-दर्शन करने से पहले आत्म-दर्शन तो करो ! जो मात्मा का दर्शन कर लेता है वही परमात्मा का दर्शन कर सकता है | सच बात तो यह है कि आत्मा ही परमात्मा के रूप को प्राप्त कर लेता है। किंतु कब ? जब वह आत्मा के सही रूप का ज्ञान कर लेता है ।