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तप (मोक्षमार्ग) का पलिमंयु : निदान
भिलापा के वश होकर निदान करने वाले साधक की अन्तर आत्मा को कभी शान्ति नहीं मिलती, वह भीतर ही भीतर व्याकुल एवं वैचैन रहती है । जब अपने ही समान अपने से कम तप करने वालों को अधिक ऋद्धिशाली, प्रभावशाली व अपने ऊपर शासन करते देखता है तो वह निदान की असारता से दुःखी भी होता है, और उस चिंता व आर्तध्यान आदि के कारण मन बेचैन बना रहता है। निदान तीव्र कर्म बंधन का भी कारण है । सम्यक्त्व का भी घातक है । इस कारण इसे शल्य कहा है ।
निदान करने वाला पछताता है
निशीथ भाष्य में निदान करके तप करने वाले एक यक्ष की कहानी आती है। चंपानगरी में अनंगसेन नामका एक स्वर्णकार रहता था । वह अत्यंत कामुक व भोगासक्त था । उसके पास धन की कमी नहीं थी । जहां कहीं भी किसी सुन्दर कन्या को देखता धन के द्वारा उसे खरीद लेता । इस प्रकार पांच सौ कन्याओं के साथ उसने विवाह किया । फिर भी भोगों में अतृप्त ही रहा ।
एक बार हासा - प्रहासा नामकी दो यक्षिणियों ने अनंगसेन को देखा, उनका यक्ष उनसे पहले ही काल कर गया था, इसलिए वे विरह में भटकती हुई अनंगसेन के पास आई । अनंगसेन को अपने रूप-लावण्य हाव-भाव के द्वारा आकृष्ट किया । अनंगसेन उनके सौन्दर्य व काम चेप्टा से उन्मत्त हो हाथ फैलाकर उनकी ओर दौड़ा । तव यक्षिणिय बोली - "हमें चाहते हो तो पंचशैल द्वीप में आओ ।" बस इतना सा कहकर दोनों अदृश्य हो गई ।
अनंगसेन तो उनके पीछे पागल होगया । उसने घोषणा करवाई "जो कोई व्यक्ति मुझे पंचशैल द्वीप पहुंचा देगा, उसे एक करोड़ स्वर्ण मुद्रा दूंगा । एक बुड्ढे नाई ने घोषणा स्वीकार की । उसने एक करोड़ स्वर्ण मुद्रा लेक घर में रखी और अनंगसेन को नौका में बिठाकर पंचशैल द्वीप को ओ चला । बहुत दूर चलने के बाद नाई ने पूछा - कुछ दिखाई दे रहा है ?
अनंगसेन बोला- "बहुत दूर, जल की धारा के बीच एक मनुष्य खोपड़ी के वरावर लाल गोला दिखाई दे रहा है ।"