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जैन धर्म में तप जंघाचारण और विद्याचारण लब्धि की शक्ति से बहुत पीछे हैं। फिर इनमें यंत्रवल है, जबकि उनमें आत्मवल का ही सारा चमत्कार है । अस्तु, .
दिगम्बर आचार्य यति वृषभाचार्य ने चारण लब्धि के अनेक अन्तर्भेदों .. का भी वर्णन किया है-जैसे जलचारण-जल में भूमि की तरह चलना, पुप्पचारण-फूल का सहारा लेकर चलना, धूमचारण-आकाश में उठते धूएं का आलंबन लेकर उड़ना, मेघ चारण-बादलों को पकड़कर चलना, ज्योतिश्चारण-सूर्य व चन्द्र की किरणों का मालंबन ग्रहण कर गमन . करना आदि ।
(११) आशीविष लब्धि-जिनकी दाढ़ों में तीव्र विप होता है उन्हें . आशीविप कहा जाता है। अर्थात् जिनकी जीभ या मुख में, जिनका थूक या मुंह से निकली सांस विप के समान अनिष्ट प्रभावकारी होती है उन्हें भी आशी विप में माना गया है ।
आशीविप के दो भेद किये गये हैं कर्म आशीविप और जांतिआशीविप! , कर्म आशीविप-तप अनुष्ठान, संयम आदि क्रियाओं द्वारा प्राप्त होता है इसलिये इसे लब्धि माना गया है । इस लव्धि वाला, शाप आदि देकर दूसरों को मार सकता है। उसकी वाणी में इतनी शक्ति और प्रभाव होता है कि क्रोध में आकर किसी को मुंह से कह दिया 'मर जाओ।' या 'तेरा नाश' हों, तो वह वाणी विप की तरह शीघ्र ही उसके प्राण हरण कर लेती है। - प्राचीन ऋषि-मुनियों को शाप आदि की जो घटनाएं. हम सुनते हैं वह एक प्रकार की यही लब्धि होगी ऐसा अनुमान होता है। वैसे इस लब्धि . के बल से सिर्फ शाप ही दिया जा सकता है, वरदान नहीं, चूकि विप प्रायः .. अनिष्ट परिणाम ही लाता है और यह लब्धि "आशीविष लब्धि' हैं। हां, यह भी प्रायः देखा जाता है कि जो शाप दे सकता है, वह वरदान दे या . न भी दे ! शाप देने वाले में वरदान देने की शक्ति होना कोई जरूरी नहीं है। बहुत से मनुष्यों के विषय में हम सुनते हैं-जिसकी जीभ काली होती है उसके मुह से जो बात निकलती है वह प्रायः सही भी हो जाती है ऐसे
१ देखिए तिलोयपण्णत्ती .