________________
७६
न और लब्धियां
मनुष्यों को 'कल जिह्वा" भी कहा जाता है। चूंकि यह लब्धि मनुष्य व तिर्यंच दोनों में हो सकती है, और सिर्फ वर्तमान में तपस्या करने से ही नहीं, किंतु अतीत में की हुई तपस्या आदि के प्रभाव से भी प्राप्त हो सकती है। देवता शाप आदि से जो अनिष्ट करते हैं वह इस लब्धि का कारण नहीं माना जाता उनमें तो देवभव जन्य ही ऐसी शक्ति होती है और वह सभी देवताओं में सामान्य रूप से पायी जाती है ।
यहां यह भी बता देना जरूरी है कि जाति आशीविष कोई लब्धि नहीं होती है, वह तो जन्मजात-जातिगत स्वभाव के कारण प्राप्त हो जाती है। जैसे विच्छू सांप आदि में जो विप होता है वह जातिगत होता है। इसीलिए कहा जाता है 'सांप का बच्चा क्या छोटा क्या बड़ा ? वह तो जनमते ही विपधर होता है।' जाति आशीविप के सम्बन्ध में स्थानांग सूत्र में काफ विस्तार के साथ वर्णन करके बताया है
जाति आशीविप के चार भेद हैं - १ बिच्छू,
होती है, वह तो
जो विप होता है
बड़ा ? वह तो जना
२ मेंढक,
३ सांप, ४ मनुष्य विच्छू से मेंढक का विप अधिक और प्रबल होता है, मेंढक से सांप का और सांप से मनुष्य का। मनुष्य का विप सबसे प्रवल और अधिक विस्तार वाला होता है।
(१२) केवलीलब्धि-चार घनघाती कर्मों के क्षय से लोकालोकप्रकाशी जो केवलज्ञान, केवल दर्शन की प्राप्ति होती है, वह केवली लब्धि है।
(१३) गणघर लब्धि-गणधर 'गण को धारण करने वाले होते हैं। ये तीर्थकरों की वाणी रूप पुष्पों को सूत्र रूप में गूथते हैं-उसे क्रमबद्ध करते हैं और आगम का रूप देते हैं, आज की भाषा में तीर्थकर प्रवक्ता होते
-स्थानांग ४१४
Tतारि जाइ मासीविसा-विच्छ्यजाई.. ...