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तप और लब्धियां
है । मल-मूत्र का माहते हैं । किंतु
हां कहीं भी उसकी ने इसका थोड़ा
किंतु तपस्या के प्रभाव से वह दुर्गन्धमय वस्तु भी सुगंधित हो जाती है, और औषधि के रूप में बन जाती है।।
(३) खेलोसहि-खेल यानी श्लेष्म, खंखार थूक । जिस योगशक्ति के प्रभाव से लब्धिधारी के श्लेष्म में सुगंध आती हो, और उसके प्रयोग-लेपनस्पर्शन आदि से औपधि की भांति रोग शांत हो जाता हो, वह खेलोसहि लब्धि है । मल-मूत्र की भांति खेल-खंखार से भी घृणा की जाती है, और उसके स्पर्श से बचना चाहते हैं। किंतु खेल खंखार तपस्या के प्रभाव से दुर्गध के स्थान पर सुगंध देने लगता है, और जहां कहीं भी उसका स्पर्श हो जाता है वस रोग को तुरंत शांत कर देता है । सनत्कुमार चक्रवर्ती ने इसका थोड़ा सा चमत्कार देवता को दिखाया, कि तू जिस शरीर के रोग मिटाने की बात करता है, उस शरीर का रोग मिटाने की दवा तो तेरी जड़ीबूटी में क्या, मेरे थूक में भी है, किंतु मुझे शरीर रोग की चिंता नहीं, कर्म रोग मिटाने की चिंता है । अस्तु ।
(४) जल्लोसहि-जल्ल नाम है मल का । शरीर के विभिन्न अवयवजैसे कान, मुख, नाक, जीभ, आँख आदि का जो मल-पसीना अथवा मैल होता है उसे 'जल्ल' कहा जाता है । साधु के २२ पीपहों में अठारहवां 'जल्ल परीषह' बताया गया है, क्योंकि इन मलों के कारण भी शरीर में दुर्गध आने लगती है, तथा वैचेनी होने लगती है । किंतु तपस्वियों को लब्धि प्रभाव से ये मल भी सुगंध देने लगते हैं, तथा इनका स्पर्श भी औपधि की भांति रोग मिटाने की अद्भुतशक्ति रखता है।
(५) सवोसहि-सोपधि । प्रथम चार लब्धियों में शरीर के अलगअलग अवयव एवं वस्तुओं के स्पर्श से रोग शांत होने की शक्ति होती है, किंतु सर्वोपधि लब्धि के धारक तपस्वी के तो शरीर के समस्त अवयवमल मूत्र, केश, नख, थूक आदि में सुगध आती हैं तथा उनके स्पर्श से रोग शांत होते हैं । इस लधिधारी का समूचा शरीर ही जैसे पारस होता है, अमृतमय होता है, जहां से भी, जो भी वस्तु छू लो तुरन्त वह चमत्कार दिखाती है।
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