________________
६८
जैन धर्म में तप
लेकिन वादल हटते ही सूर्य चमकने लगता है । रंगमंच पर पर्दा पड़ा रहता है, तब तक अभिनेता दिखाई नहीं देता, किंतु जैसे ही पर्दा हटता है अभिनेता हमारे सामने हंसता-बोलता दिखाई देता है । इसी प्रकार जव जिस विषय के कर्मदलिक दूर होते हैं तब उस उस सम्बन्ध की आत्मशक्ति प्रकट होकर हमारे सामने आ जाती है । आचार्य अभयदेव ने वताया हैआत्मनो ज्ञानादि गुणानां तत्कर्म क्षयादितोलाभ: १. - आत्मा के ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वीर्य आदि गुणों का तत् तत् सम्बन्धित कर्मों के क्षय व क्षयोपशम से जो लाभ प्राप्त होता है, उसे लब्धि कहते हैं । जैन दर्शन में लब्धि का प्रायः सर्वत्र इसी अर्थ में प्रयोग हुआ है । लब्धि की प्राप्ति परिणामों की विशुद्धता, चारित्र की अतिशयता तथा उत्कृष्ट तप के आचरण से होती है । आचार्य ने बताया है
परिणाम तववसेण इमाई हुति लडीओ | 2
शुभ परिणाम एवं तप संयम के आचरण से ये लब्धियां प्राप्त होती हैं । इस कारण ये लब्धियां शुद्ध आत्मशक्ति हैं । इनमें कोई देवशक्ति, या मंत्र की शक्ति का सहारा नहीं लिया जाता है ।
वैदिक दर्शन में योगदर्शनकार पंतजलि ने इन्हीं लब्धियों को 'विभूति' कहा है । साधक योगी, अपनी साधना के द्वारा अनेक प्रकार की विभूतियां प्राप्त कर लेता है, अनेक चमत्कार प्राप्त करता है । जैन दर्शन में जैसे कहा है- ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय व क्षयोपशम से ज्ञान सम्वन्धी लब्धियां प्राप्त होती हैं, वैसे ही अन्य कर्मों के क्षयादि से उनसे सम्बन्धित लब्धियां । आचार्य पतंजलि ने योगदर्शन में भी प्रायः इसी प्रकार विभूतियों की प्राप्ति का क्रम दिखाया है, जैसे अहिंसा की साधना से वैरविजय, 3 सत्य की साधना से वचन सिद्धि आदि । वौद्ध दर्शन में इस 'लब्धि' या
१ भगवतीसूत्र वृत्ति पार
प्रवचन सारोद्धार २७० ११४६५
२
३ अहिंसा प्रतिष्ठायां तस्सन्निधो वैरत्यागः । ४ योगदर्शन २३६
— योगदर्शन २३५