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९
१.
२.
३.
सव्वे पाणा पिआउआ, सुहसाया दुक्खपडिकूला,
अप्पियवहा पियजीविणो, जीविकामा
सव्वेसि जीवियं
नाइवा एज्ज
पियं
कंचणं ।
सब प्राणियों को अपनी जिन्दगी प्यारी है । सुख सब को अच्छा लगता है और दुःख बुरा वध सब को अप्रिय है, और जीवन प्रिय । सब प्राणी जीना चाहते हैं,
कुछ भी हो, सब को जीवन प्रिय है । अतः किसी भी प्राणी की हिंसा न करो ।
आरंभजं दुक्खमिणं ।
यह सब दुःख आरम्भज है अर्थात् हिंसा में
आयओ बहिया पास ।
अहिंसा
- आचारांग १/२/३
- आचारांग १।३।१
से उत्पन्न होता है ।
अपने समान ही बाहर में दूसरों को भी देख ।
३०
- आचारांग १।३।३