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विनय-अनुशासन २२. न उ सच्छंदता सेया लोए किमुत उत्तरे।
-व्यवहारमाय पीठिका ८६ स्वच्छन्दता लौकिक जीवन में भी हितकर नहीं है तो लोकोत्तर
जीवन (साधक जीवन) में कैसे हितकर हो सकती है ? २३. न यावि मोक्खो गुरुहीलणाए।
-दशव० ९१७ गुरुजनों की अवहेलना करनेवाला कभी बन्धन-मुक्त नहीं हो सकता।
जस्संतिए धम्मपयाई सिक्खे, तस्संतिए वेणइयं पजे।
- दशवै० ६१ जिनके पास धर्मपद-धर्म की शिक्षा ले, उनके प्रति सदा विनय
भाव रखना चाहिए। २५. जं मे बुद्धाणुसासंति सीएण फरुसेण वा । मम लाभो त्ति पेहाए पयओ तं पडिसुणे ।
-उत्तरा० ११२७ गुरुजन जब कठोर शिक्षा दें, तब शिष्य को सोचना चाहिए कि यह कठोर व मधुर शिक्षा मेरे लाभ के लिए है, अतः उसे सावधानी के साथ सुनना चाहिए।