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________________ जैनधर्म की हजार शिक्षाएं ५. सर्वसुखमूलबीजं, सर्वार्थविनिश्चयप्रकाशकरम् । सर्वगुण - सिद्धिसाधन-धनमर्हच्छाशनं जयति ॥ -प्रशमरति प्रकरण ३१३ जो समस्त सुखों का मूलबीज, समस्त पदार्थों का विनिश्चयात्मक प्रकाश करनेवाला एवं जो समस्त गुणों की सिद्धि के साधन रूप धन से युक्त है, वह जैनशासन विजयी हो रहा है। ५. धम्मो मंगलमुक्किट्ठ, अहिंसा संजमो तवो । देवावि तं नमसंति जस्स धम्मे सया मणो॥ -दगर्वकालिक १११ धर्म सब से उत्कृष्ट मंगल है। धर्म है-अहिंसा, संयम और तप। जो धर्मात्मा है, जिनके मन में सदा धर्म रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते है। ६. धम्मो उ भावमंगलमेत्तो सिद्धि त्ति काऊणं । -दशवै० नियुक्ति ६० धर्म भावमंगल है, इसी से आत्मा को सिद्धि प्राप्त होती है। ७. पावाणं जदकरणं, तदेव खलु मंगलं परमं । -बृह० भा० ८१४ पापकर्म न करना ही वस्तुतः परम मंगल है।
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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